विधानसभा का चुनाव हो या लोकसभा का चुनाव वोटर को आकर्षित करने का एक नयी युक्ति ‘ओल्ड पेंशन स्कीम’ चालू करना है। चुनाव शुरू होने के पहले ही पुरानी पेंशन योजना के बारे में चर्चा शुरू हो जाती है।
ओल्ड पेंशन स्कीम को 2004 में बंद कर दिया गया था। लेकिन कुछ राज्यों में इसे फिर से चालू किया जा रहा है।
हालांकि इसके बारे में अक्सर ऐसा सुना जाता है की ओल्ड पेंशन स्कीम शुरू करना अर्थव्यवस्था के हिसाब से सही नहीं है।
इस योजना को शुरू करने से आने वाली सरकारों पर कर्ज का बोझ बढ़ेगा।
उन्हें बहुत सारी नई परेशानियों का सामना करना पड़ेगा।
अभी हाल ही में राजस्थान सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पुरानी पेंशन स्कीम को चालू कर दिया है।
जिसे देख कुछ राज्य इसे लागू करने का सोच रहे हैं और कुछ राज्य लागु कर चुके है।
जी हां आज हम अपने आर्टिकल के माध्यम से पुरानी पेंशन स्कीम के बारे में चर्चा करेंगेl
और साथ ही साथ यह भी बताएंगे कि क्या पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करना सरकार के लिए सही फैसला साबित होगा या फिर सरकार वित्तीय मामलों में फंस जाएगी। तो आइए जानते हैं
अक्सर हम देखते हैं चुनाव की गहमागहमी में आम नागरिकों को अपनी ओर रिझाने के लिए पार्टियां नए-नए मुद्दे सामने लेकर आती है।
अभी राजनीतिक पार्टियां ओल्ड पेंशन को लेकर के बहुत ज्यादा चर्चा कर रही है।
चाहे वह आप के केजरीवाल हो या कांग्रेस के राहुल गांधी सभी जोर-शोर से अपने चुनाव का प्रचार इसी मुद्दे को लेकर के कर रहे हैं कि, अगर उनकी सरकार सत्ता में आ जाएगी तो वह ओल्ड पेंशन को दोबारा से लागू कर देंगे।
सरकार द्वारा ओल्ड पेंशन हटा करके न्यू पेंशन सरकारी कर्मचारियों के लिए लागू किया गया है। उसे फिलहाल कुछ राजनीतिक पार्टियां गलत बता रही है ।
झारखंड, छत्तीसगढ़, पंजाब यह सभी राज्यों में पुरानी पेंशन लागू की जा चुकी है।
राजस्थान में इसे लागू किया जा चुका है जबकि अर्थव्यवस्था के दिग्गजों का कहना है कि ओल्ड पेंशन स्कीम को लाने के पहले सभी राज्यों को एक बार सोच विचार कर लेना चाहिए।
फिलहाल गुजरात चुनाव में भी पार्टियों ने पुराने पेंशन को शुरू करने का आश्वासन जोर-शोर से दिया हैं l
पुरानी पेंशन में यह नियम था कि अगर सेवानिवृत्त कर्मचारी कि किसी कारण से मौत हो जाती है तो उनके परिवार को पेंशन सरकार की ओर से दिया जाएगा।
2005 के बाद से जो भी सरकारी कर्मचारी नियुक्त हुए हैं उनके लिए नई पेंशन स्कीम को चालू किया गया है।
इसके बाद सभी राज्यों ने नई पेंशन स्कीम को अपना लिया था। लेकिन अब कुछ राज्य पुरानी पेंशन स्कीम को फिर से शुरू कर चुके हैं।
एसबीआई के द्वारा जानकारी दी गई है कि अगर पुरानी पेंशन स्कीम को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तो यह स्कीम अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब बन जाएगी।
गरीब राज्य जो पहले से कर्ज में डूबे हैं उन्हें इस स्कीम को अपने राज्य में नहीं लागू करना चाहिए।
पुरानी पेंशन योजना क्या है?
१. पुरानी पेंशन योजना के अंतर्गत जो सेवानिवृत्त कर्मचारी होते हैं उनके वेतन का 50% पेंशन के रूप में दिया जाता था।
२. कर्मचारियों के लिए बहुत फायदे सरकार द्वारा दिए गए थे।
३. जनरल प्रोविडेंट फंड पुराने पेंशन स्कीम में लागू था।
४. महंगाई भत्ता हर छह महीने बाद जोड़ने का नियम था।
५. जब कभी वेतन आयोग को लागू किया जाएगा तो सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पेंशन भी उसी आधार पर बढ़ाई जाएगी।
६. ग्रेजुएटी की रकम 20 लाख रुपए थी जो कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद प्रदान किया जाता था।
७. पेंशन देने के लिए वेतन से कोई भी कटौती नहीं की जाती थी।
८. कर्मचारियों को सरकार की ट्रेजरी द्वारा पेंशन दिया जाता है।
नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री सुमन बेरी द्वारा कुछ राज्य जो पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू कर रहे हैं उन्हें यह पूछा है कि राज्य सरकार पैसा किस प्रकार से कर्मचारियों को प्रदान करेगी।
क्योंकि राज्य सरकार पहले से ही घाटे में चल रही है और अगर केंद्र सरकार द्वारा पैसा नहीं प्रदान किया जाएगा, पुरानी पेंशन स्कीम शुरू करने का क्या लाभ होगा।
आखिर में सारा बोझ करदाताओं पर पड़ेगा। अभी कुछ समय पहले राजस्थान के गहलोत सरकार द्वारा इस योजना को फिर से लागू किया गया है।
जिससे राजस्थान सरकार को 41 हजार करोड़ रुपए 700000 कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम शुरू करने पर देना होगा।
राजस्थान सरकार की पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के बाद अन्य राज्यों द्वारा भी इस योजना को लागू करने की घोषणा कर दी है।
जबकि नीति आयोग इस फैसले से खुश नहीं है उन्हें पता है कि आगे जाकर के यह योजना सब राज्यों के लिए वित्तीय संकट खड़ा कर सकती है।
जब सब राज्य ने नई पेंशन योजना को लागू कर दिया था तो फिर से पुरानी योजना को लागू करने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
लेकिन चुनावी दंगल में वोटरों को अपनी और आकर्षित करने के लिए इस प्रकार के नए वादे करके अपनी राजनीति चमकाना ही मुख्य उद्देश्य बन गया है।
नई पेंशन योजना क्या है?
नई पेंशन योजना को सरकार द्वारा 1 अप्रैल 2004 में शुरू किया गया था।
इस योजना के अंतर्गत राज्य सरकार पेंशन देने के लिए उनके वेतन का 10% पेंशन योजना के लिए सुरक्षित रखते हैं और सरकार द्वारा इस में 14% का योगदान दिया जाता है।
जिन लोगों ने 1 अप्रैल 2004 के बाद सरकारी नौकरी हासिल की है उन्हें ही नई पेंशन योजना का लाभ दिया जाएगा।
इसमें कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद जो धनराशि दी जाएगी उस पर उन्हें टैक्स देना होगा।
नई पेंशन में जनरल प्रोविडेंट फंड का कोई भी लाभ नहीं दिया जाता है।
यह पेंशन स्टॉक मार्केट के रिटर्न के अनुसार ही पेंशनधारियों को दी जाएगी।
इसके अंतर्गत अगर कर्मचारी की मृत्यु रिटायरमेंट के बाद हो जाती है, तो उनका सारा पैसा उनके नॉमिनी को सरकार द्वारा दिया जाएगा।
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आयकर दाताओं को होगी दिक्कत
जिस तरह से सभी राज्य पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करते जा रहे हैं, उससे आने वाले समय में आयकर दाताओं पर कर का बोझ बढ़ जाएगा।
राज्य सरकार पहले से ही घाटे में चल रही है। जब केंद्र सरकार राज्य सरकार को कोई वित्तीय सहायता नहीं करेगी, तो राज्य सरकार आम नागरिकों से अलग-अलग तरह के टैक्स लेगी।
तब जाकर के राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति ठीक हो पाएगी।
पुरानी पेंशन स्कीम योजना को लाना मतलब टैक्सपेयर पर वित्तीय बोझ बढ़ाना।
निष्कर्ष
हमने आज अपने आर्टिकल के माध्यम से आपको पुरानी पेंशन स्कीम एवं नई पेंशन स्कीम के बारे में जानकारियां प्रदान की है।
पुरानी पेंशन स्कीम और नई पेंशन स्कीम में कितने अंतर हैं यह बताया है।
पुरानी पेंशन स्कीम को लाने से सरकार और राज्य को क्या क्या परेशानियां हो सकती हैं इसके बारे में भी चर्चा की है।
राजनीतिक पार्टियां चुनाव में पुराने पेंशन योजना को लेकर के कैसे अपने वोट बैंक जुटा रहे हैं इसके बारे में भी बताया है।
हम आशा करते हैं कि आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद आया होगा, हमारे आर्टिकल में अंत तक बने रहने के लिए आपका धन्यवाद।
सबसे पहले राजनेताओं की पेंशन बंद करनी चाहिए! राजनेताओं को दो-दो तीन-तीन चार-चार पेंशन दी जाती हैं तो क्या उनसे करदाताओं का नुकसान नहीं होता? एक सारी जिंदगी सरकार की सेवा करते हुए लगा देने वाले कर्मचारियों को बुढ़ापा सुरक्षित करने की कोई नहीं सोचता!